मेजर ध्यानचंद ने आखरी समय क्यों कहा “भारतीय मेरे मरने पर आंसू भी नहीं बहाएंगे

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हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद भारत के एक अमर हॉकी खिलाड़ी हैं। मेजर ध्यानचंद ने अपने समय में काफी ऐसे मैच खेले और ऐसे गोल किए जिनके बारे में विपक्षी टीम को अंदाजा भी नहीं होता था। अपने खेलने की कला के कारण मेजर ध्यानचंद ने पूरी दुनिया में अपना नाम बनाया और इसी कारण उन्हें हॉकी का जादूगर भी कहा जाने लगा। हालात ऐसे थे कि जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने उन्हें अपने देश के लिए खेलने का भी ऑफर कर दिया था। आज उनकी मौत के बाद उनके गृह जिले झांसी में उनके एक मूर्ति बनाई हुई है और इस मूर्ति के नीचे कुछ लोग ताश खेलने और मजे करने के लिए आते हैं तब उनके द्वारा 1979 में कही गई एक बात याद आती है जिसमें उन्होंने कहा था कि मेरे मरने के बाद भारतीय आंसू तक नहीं बहाएंगे। आइए पूरा मामला समझते हैं।

हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद ने कहीं दूरदर्शी सोच की बात
हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद ने कहीं दूरदर्शी सोच की बात

हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद ने कहीं दूरदर्शी सोच की बात

हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद अपने समय के दुनिया के सबसे बेहतरीन खिलाड़ी थे। अपने खेल के बदौलत उन्होंने इतिहास के पन्नों में अपना अमिट नाम दर्ज करवा दिया है। इस दुनिया में हर इंसान अपना नाम बनाने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में पूरा जी जान लगाकर मेहनत करता है मेजर ध्यानचंद ने ओके में काफी ऐसे मैच खेले हैं जिन्हें देखकर लोगों को यकीन नहीं हो पाया कि वह हॉकी से इतना बेहतरीन कमाल कर सकते हैं जब मेजर ध्यानचंद अपने अंतिम पलों में थे तो उस समय करीब 100000 लोग पहुंचे थे और स्टेडियम में ही उनका अंतिम संस्कार किया गया था।

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मेजर ध्यानचंद ने आखरी समय क्यों कहा "भारतीय मेरे मरने पर आंसू भी नहीं बहाएंगे
मेजर ध्यानचंद ने आखरी समय क्यों कहा “भारतीय मेरे मरने पर आंसू भी नहीं बहाएंगे

मेजर ध्यानचंद का जन्म 19 अगस्त 1950 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था उनके पिता भारतीय सेना में तैनात थे जिनके साथ वह बार-बार एक जगह से दूसरी जगह है यात्रा किया करते थे। 16 साल की उम्र में ही उन्होंने सेना ज्वाइन कर ली और अपनी बटालियन के साथ ही हॉकी खेलने लगे। 1926 में सेना के खिलाड़ी हॉकी खेलने के लिए न्यूजीलैंड गए जहां मेजर ध्यानचंद का भी सिलेक्शन हो गया बस इसके बाद क्या था न्यूजीलैंड में कुल 121 मैच खेले गए हैं। जिसमें 118 मैच भारत ने जीते और इनमें भारत ने 192 गोल किए जिनमें 100 गोल सिर्फ मेजर ध्यानचंद की थी। इसके बाद मेजर ध्यानचंद ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और विश्व के अलग-अलग देशों में जाकर हर जगह भारत को हॉकी के मैच में जीत दिलाई।

मेजर ध्यानचंद के खेलने के तरीके को देखकर लोगों को यहां तक शक होने लगा था कि कहीं उन्होंने अपनी हॉकी स्टिक में कोई चुंबक तो नहीं लगा रखा है इसलिए उनकी हॉकी स्टिक को तोड़कर देखा गया। आपको बता दें कि अंतिम क्षणों में मेजर ध्यानचंद ने कहा कि “हिंदुस्तान में हो कि खत्म हो रही है खिलाड़ियों में लग्न का अभाव है और जज्बा भी खत्म हो रहा है अपनी मौत से मात्र 2 महीने पहले उन्होंने कहा कि जब मैं मरूंगा तो पूरी दुनिया रोएगी लेकिन भारत के लोग मेरे मरने पर आंसू नहीं बहाएंगे क्योंकि मैं उन्हे जानता हूं।”

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