- भारत में सामान्य तौर पर बात करें तो स्कूल खत्म होते होते बच्चे डॉक्टर इंजीनियर आदि बनना चाहते हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनके सपने सामान्य लोगों से अलग रहते हैं। ऐसा ही एक मामला सामने आया है जहां एक कि-सान परिवार से संबंध रखने वाले एक युवक ने आई-आईटी के लिए पढ़ाई की और फिर आई-आईटी करके लाखों में नौकरी छोड़कर किसानों के लिए काम करने लगे। हम बात कर रहे हैं बनारस के रहने वाले विशाल सिंह की जिन्होंने खुद के जीवन को संवारने की बजाय कि-सानों और आदि-वासियों का जीवन संवारना अधिक मुनासिब समझा।
आईआईटी में जाने का था भूत सवार
बनारस के रहने वाले विशाल जब 12वीं के कक्षा में पढ़ाई कर रहे थे उस समय आई-आईटी के लिए प्रयास किया। लेकिन दो बार प्रयास करने के बावजूद भी उन्हें सफलता नहीं मिली। आपको बता दें कि विशाल एक सामान्य और कि-सान परिवार से ताल्लुक रखते हैं इसलिए उन्होंने दो बार विफल होने के बाद आई-आईटी के बजाय कॉलेज में ही एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग में दाखिला ले लिया। इसके बावजूद ग्रेजुएशन चलते हुए भी उनके दिमाग से आईआईटी का भूत नहीं उतरा था। विशाल ने फैसला किया कि ग्रेजुएशन के बाद वह मास्टर्स की डिग्री आईआईटी से ही प्राप्त करेगा। इसके बाद ग्रेजुएशन के पहले ही गेट की तैयारी शुरू कर दी और अपनी पूरी मेहनत और लगन से आईआईटी खड़कपुर में दाखिला ले लिया।
आईआईटी खड़कपुर में पढ़ते हुए विशाल ने फूड प्रोसेसिंग के बारे में पता लगाया। यहां पढ़ाई करते समय उन्होंने काफी बातों को जाना। किसा-नों से उसका खास लगाव था क्योंकि वह खुद भी एक कि-सान परिवार से ही ताल्लुक रखता था। घूम घूम कर काफी बातें जाने के बाद विशाल को यकीन हुआ कि अगर कि-सानों को सही मार्गदर्शन मिले तो वे खेती से बहुत अधिक पैसा कमा सकते हैं। खड़कपुर के आसपास में आ-दिवासी लोग रहते हैं तो अक्सर विशाल आदिवासियों के पास जाया करते थे और वहां रहने वाले लोगों की हालत देखकर उन्हें दुख रहता था। इसके बाद 2013 में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उसे ला-खों रु-पए का पैकेज मिला
विशाल सिंह ने लाखों रुपए के पैकेज को छोड़कर गरीब कि-सानों की मदद करने का फैसला किया लेकिन उस समय विशाल की खुद की आर्थिक स्थिति भी ज्यादा अच्छी नहीं थी। तब उन्होंने कुछ समय के लिए पै-से कमाने के चक्कर में शाहजहांपुर की राइस मिल में कार्य करना शुरू किया। 2014 में विशाल सिंह ने उड़ीसा के एक कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। तब उन्हें यहां आदि-वासियों की मदद करने का मौका मिला और कॉलेज के ही एक एनएसडीसी प्रोजेक्ट के तहत पिछडे गांव को स्मार्ट विलेज में बदलने के लिए वह आगे आए।
इसके बाद धीरे-धीरे आदि-वासी और गरीब कि-सानों को उन्होंने फूड प्रोसेसिंग के बारे में बताया। गांव में तालाब, सोलर सिस्टम, गोबर गैस प्लांट भी लगवाए। साथ-साथ विशाल का कहना है कि अगर कि-सान फूड प्रोसेसिंग के बारे में सीख जाता है तो कि-सान खेती से ही ला-खों रु-पए कमा सकता है। विशाल सिंह काफी गांवो की मदद कर चुके हैं और अब तक लगभग 35000 आदि-वासियों और किसा-नों का जीवन भी संवार चुके हैं।