मदर टेरेसा जन्मदिवस : मानव सेवा के लिए भिखारी भी बनी थी मदर टेरेसा
मदर टेरेसा जब तक जीवित रही उन्होंने सन्त की तरह अपना जीवन व्यतीत किया, भले ही वह जीते जी सन्त घोषित न हुई हो लेकिन उनका पूरा जीवन सन्त की तरह ही था।वह सभी धर्मों के लोगो से प्रेम भावना से मिलती थी। इंसानियत का भाव उनके अंदर कूट कूट कर भरा हुआ था।
उनके अंदर मानव सेवा का जनून इस कदर भरा हुआ था कि वह बिना भेदभाव के सभी धर्मों के लोगो का सम्मान करती थी। इस सेवा संकल्प की पूर्ति का सफर उन्होंने अकेले ही शुरू किया था। उन्होंने इस सफर के शुरुआती साल संघर्ष में गुजारे लेकिन प्रार्थना और सेवाभाव के जज्बे से वो आगे बढ़ती रही और एक दिन वो आया जब विश्व मे उन्होंने मानव सेवा का एक उदाहरण पेश किया। 26 अगस्त यानी आज उनका जन्मदिन है। इस अवसर पर उनकी शिक्षाओं को याद किया जा रहा है।
बंगाल के मिशनरियों की कहानी
मदर टेरेसा का जन्म अल्बेरिया में हुआ था। पैदा होने के दूसरे दिन ही मदर टेरेसा को ईसाई धर्म की दीक्षा मिल गई। इसलिए वह अपना जीवनदिवस 27 अगस्त को ही मनाया करती थीं। एकनेश पर बचपन से ही मिशिनरी जीवन का बहुत प्रभाव था।
मदर टेरेसा ने मिशिनरीयो के सेवाकार्यो की कहानियां सुनी जिससे वह बहुत प्रभावित हुई जिससे भारत आने की भावना उनके मन मे उजागर होने लगी।
18 वर्ष की आयु में एकनेस ने अपना पूरा जीवन मानवता और धर्म के काम मे समर्पित कर दिया। इसी साल वह आयरलैंड के इंस्टिट्यूट ऑफ बलेस्ड वर्जिन में चली गई जिससे वह अंग्रेजी सीखने के बाद भारत जाने का सपना पूरा कर सकी। आपको बता दे कि भारत मे सिस्टर्स ऑफ लोरेटो की निर्देश भाषा अंग्रेजी ही थी। इसके बाद उन्होंने अपने घर का रुख नही किया और न ही अपने घरवालों को कभी देखा।
शिक्षण कार्यो में नही थी दिलचस्पी
1929 वो साल था जब एक्नेस भारत पहुंची और दार्जिलिंग में रहकर बंगाली सीखी और अपने कॉन्वेंट के पास शिक्षण का कार्य शुरू किया। साल 1931 में एक्नेस ने पहली धार्मिक प्रतिज्ञा ली और इस दौरान एक्नेस ने अपना नाम एक्नेस की जगह मदर टेरेसा रख लिया। उन्होंने कलकत्ता में 20 वर्ष तक एनटैले के लॉरेंट कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाया था। लेकिन उनका मन तब बहुत दुखी होता था जब वो कलकत्ता में गरीबी देखती थी।
ईश्वर का आदेश
1943 में बंगाल में आए आकाल और 1946 में सम्प्रदायिक हिंसा ने उन्हें झकझोर कर दिया। इसी समय वह जब दार्जलिंग जा रही थी, तब उनके अंदर से आवाज आई और उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि ईश्वर उन्हें गरीबो की सेवा करने का आदेश दे रहा है। उसी समय उन्होंने गरीबो की सेवा करने का फैसला करलिया।
संघर्ष की बीच बिता जीवन
उन्होंने स्कूल छोड़ने की इजाजत मांग ली। इसके बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन पूरी तरह गरीबो की सेवा में समर्पित कर दिया । उन्होने दो साधारण सी कपास की साड़ी ली जिनमे नीली पट्टी थी। इसके बाद वह खुद गरीबो की झुग्गियों में जाकर रहने लगी। इस दौरान उन्हें किसी तरह का सहयोग नही मिला इस बीच खुद को जिंदा रखने के लिए उन्होंने भीख मांगनी शुरू करदी लोगो ने उन्हें सन्देह के नजरिए से देखते हुए उन्हें नजरअंदाज किया।