‘‘जीवन में सफलता संघर्ष के अंत में ही मिलती है. संघर्ष के समय में जो बात हमारी निराशाजनक रहती हैं, सफलता मिलने के पश्चात वही सब ठीक लगने लगता है. वह सब यादें सुखद मय हो जाती हैं. हम जब अनेक बड़े-बड़े फिल्म स्टारों की गंभीर आहट भरी जिंदगी देखते हैं तो सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि उन लोगों का रहनसहन कितना बढ़िया हो रहा होगा, लेकिन हमें उस वक्त यह मालूम नहीं होता है कि यह सफलता उनको कितने संघर्ष करने के बाद मिलती है.
बहरहाल हम के सकते है कि, Success की सबसे खास बात है की, वो मेहनत करने वालों पर फ़िदा हो जाती है I
खैर, आज हम आपको एक ऐसी ही कहानी के बारे में बताने जा रहे है, जो राजस्थान की उम्मुल खैर से जुड़ी है। उम्मल खैर का परिवार अशिक्षित था। जिनके पास 2 वक्त की रोटी खाने का कोई माध्यम नही थी। काम को तलाश में ये गरीब परिवार दिल्ली आ गया। जब ये परिवार दिल्ली चला आया तब उम्मुल 5 साल की थी।
उम्मुल का परिवार जिस जगह रहता था। वहाँ इनके घर के पीछे नाला था।
घर के पीछे नाला होने की वजह से, अत्यधिक बहाव के कारण इनके घर मे पानी पहुंच जाता था। 2001 मे ये एक बार को बैघर हो गए। ऐसी परिस्थितियों में बारापुला से त्रिलोकपुरी में एक कामचलाऊ घर लेकर रहने लगें। ऐसे परिस्थितियों में उम्मुल 7वी क्लास में पढ़ रही थी। और उन्होंने अपने घर हालात को देखते हुए 7वी कक्षा में पढ़ते हुए ही बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। उस समय एक बच्चे की फीस 50₹ हुआ करती थी। बच्चों को पढ़ाकर, बड़ी मुश्किल से कमरे का किराया और खाने का प्रबंध किया जाता था।
8 वी क्लास में पढ़ने के समय घर वालो ने उम्मुल को आगे पढ़ाने से मना कर दिया। घरवालों ने उम्मल से कहा था कि तुम्हारे पैर खराब है,इसलिए तुम्हे सिलाई का काम सिख लेना चाहिए।
उम्मुम की माँ उनके संग नही थी। और सौतेली माँ ने उन्हें कभी माँ वाला प्यार नही दिया।
उम्मुल ने बताया कि घरवालों द्वारा पढाई के लिए साफ इंकार करने के बाद उन्हें वापिस राजस्थान जाने को कहने लगे। लेकिन, वो नही मानी और अकेली किराए पर कमरा लेकर रहने लगी। यहाँ उम्मुल सुबह ही स्कूल जाती थी और स्कूल से आकर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगी ।
इसके बाद, उम्मुल को 10वीं से ही एक चेरिटेबल ट्रस्ट की तरफ से स्कालरशिप मिल गई। 12वीं तक की पढ़ाई छात्रवृति के जरिए पूरी हो गई।
उम्मुल ने 12वी कक्षा में टॉप किया था उनकी हिम्मत में जान फूंक गई और उन्होंने कुछ बनने का ठान लिया ।
UPSC में पास होने का देखा था सपना
उम्मूल (Ummul) ऑस्टियो जेनेसिस जैसी बिमारी से ग्रसित थी, जिससे शरीर की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। उम्मूल खेर ने 16 फ्रैक्चर और 8 सर्जरी होने के बावजूद भी UPSC की तैयारी करने का फैसला किया। उम्मूल के लिए UPSC का सफर इतना सरल नहीं था।
क्योंकि हड्डियों की बीमारी से जूझ रही थीं क्योंकि,उम्मुल बचपन से ही हड्डियों की बीमारी से जूझ रही थी. उन्हें बोन फ्रजाइल डिसीज़ थी. इस बीमारी में हड्डियाँ बहुत नाज़ुक हो जाती है. अगर कभी शरीर में गिरने की वज़ह से दबाव या चोट पड़ता है. तो हड्डियाँ सहन नहीं कर पाती हैं. उम्मुल के शरीर के साथ इस बीमारी ने भी अपना असर दिखाया. 28 साल की उम्र तक उम्मुल के शरीर में 15 फ्रैक्चर और 8 सर्जरी हो चुकी थी.
उन्होंने जेआरएफ की तैयारी के साथ ही यूपीएससी की तैयारी करना शुरू कर दिया. जेआरएफ से जो पैसे उनको मिलते उन पैसों से वह अपनी पढ़ाई पूरी करने लगे. इसका अससर ये हुआ कि उनका पूरा ध्यान पढ़ाई पर ही समर्पित हो गया. वह पढ़ाई में जितना अच्छी थी. उतना मेहनती भी थी. उन्होंने अपने पहले ही प्रयास में सिविल सर्विस की परीक्षा में सफलता हासिल कर ली. उन्हें यूपीएससी की इस कठिन परीक्षा में 420वीं रैंक मिल गए. इसके साथ ही वह आईएएस अधिकारी बन गए.