छुट्टी के दिन मस्ती नहीं पॉकेट मनी भी करते है खर्च अच्छे कामो में, बेजुबान जानवरो की मदद करते है ये बच्चे
सुनें कहते हैं कि बच्चे मिट्टी की तरह होते हैं। उन्हें जैसा रूप दे दो वे वैसे बन जाते हैं। लोग यह भी कहते हैं कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं। बच्चों में कोई बुराई नहीं होती है और वे बड़े होते हुए अपने आसपास से बुराई सीखते हैं।ऐसे ही बच्चों के बारे मे आज हम आपको बताने जा रहे है
छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव के बच्चों ने समाज में कुछ अलग व बेहतर करने का बीड़ा उठाया है। करीब 18 महीने पहले इन बच्चों ने मूक पशु-पक्षियों मदद की एवं रक्तदान के लिए एक संस्था बनाई, जिसका नाम जैनम वेलफेयर फाउंडेशन रखा।
इस संस्था की विशेषता यह है कि इस ग्रुप में 80% प्रतिशत सदस्यों की उम्र 20 वर्ष से कम है, बच्चों के बीच में ऐसा ताल-मेल है कि जब भी किसी सदस्य की परीक्षा होती है, तो उसके जगह पर दूसरे सदस्य इन पशुओं की मदद करने पहुंच जाते है। दिन हो या रात, सुबह हो या शाम ये सभी सदस्य बस एक फ़ोन कॉल पर हाजिर हो जाते है।
शहर के आवारा जानवरों के खाने की व्यवस्था करना, गर्मी के दिनों में बेजुबान पशु-पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था करना आदि काम यह बच्चे शुरू से करते थे। इसके साथ-साथ दुर्घटना के दौरान घायल जानवरों को अस्पताल ले जाकर पूरा इलाज करवाना, प्लास्टिक आदि खाकर अधमरी हुई गायों का तुरंत उपचार कराना और देखभाल भी यह बच्चे बखूभी कर रहे हैं।
इस संस्था के संस्थापक जैनम बैद है,वो एक किस्सा बताते हैं “एक बार शहर के गुड़ाखू लाइन, फल मार्केट में एक जानवर गहरे नाले में गिर गया था। जब यह बात हम लोगों को पता चली, तो कुछ साथियों ने नगर निगम से बात की, एक सुरक्षा वाहन को बुलाया और उस जानवर को सुरक्षित बाहर निकाला, इसके बाद एक हफ्ते तक हमने उसका का पूरा इलाज करवाया।” और पूरी तरह देखभाल करी।
इन पशुओं को सड़क दुर्घटना से बचाने के लिए पशुओं के गले में रेडियम की पट्टी भी लगाने का काम सदस्य करते रहते हैं। अब तक 700 जानवरों के गले में रेडियम पट्टी बाँधी जा चुकी है, जिससे हाईवे पर 30% तक दुर्घटनाओं में कमी आई है। जो देखा जाए तो दुर्घटना की कमी दर पहले के मुताबिक काफी हद तक इस कदम से नियंत्रित हुई है।
जिस उम्र में बच्चे खेल-कूद में मस्त रहते हैं, और अपना बचपन बिना किसी फिक्र के जीते है उसी उम्र में जैनम वेलफेयर समूह के ये बच्चे, लोगों की जान बचाने के लिए ‘रक्तदान महादान अभियान’ चला रहे हैंI इस अभियान के तहत ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को रक्तदान के लिए प्रेरित किया जाता है, इतना ही नहीं संस्था के सभी स्वस्थ सदस्य हर तिमाही (3 महीने) में ब्लड डोनेट करते हैं और अब तक 1350 युनिट रक्त जरुरतमंद मरीजों तक पहुंचाया जा चुका हैI विशेष बात यही है कि आप ग्रुप के सदस्यों को रक्त के लिए रात-बेरात किसी भी वक़्त कॉल कर सकते हैंI
जैनम कहते है, “मुझे आज भी वह दिन याद है, जब एक अजनबी व्यक्ति मेरे दरवाज़े पर आया और कहने लगा कि उसकी माँ गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती है, जिसे खून की सख्त जरूरत है और हमारी संस्था के प्रयास से उसे खून मिल गया, ऐसा लगा उस दिन हमारी जीत हो गईI”
पॉकेट मनी से करते है बेसहारा और बेजुबान जानवरो की मदद
संस्था के सभी सदस्य अपने पॉकेट मनी का एक हिस्सा जीव दया, गरीब व लाचार बच्चों की पढ़ाई और आर्थिक रूप से कमज़ोर मरीजों के इलाज में लगाते हैI
संस्था के सदस्य यश पारख का कहना है, “पहले अपने जेब खर्च के पैसे देने का मन नहीं करता था, लेकिन जब मैंने देखा कि एक छोटी सी राशि से कितना कुछ बेहतर हो सकता है, तब से हम सब ख़ुशी-ख़ुशी इस नेक काम में अपनी पॉकेट मनी देते हैंI”
संस्था के सदस्य आशीष गिडिया कहते है, “पहले मैं रोज़ घंटो वीडियो गेम खेलने में अपना समय गंवाता था, लेकिन अब हर रोज़ जरुरतमंदो की मदद करता हूँI पहले जानवरों से बहुत डर लगता था, लेकिन अब उन मूक पशुओं के लिए हर संभव मदद करने की कोशिश करता हूँI हम सभी को हर रोज़ एक अच्छा काम करने की कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि इससे बहुत ख़ुशी मिलती हैI”
संस्था के सदस्य आयुष के पिता ने कहा है कि शुरुआत में वे सोचते थे कि ये बच्चे यह सब काम कैसे करेंगे, पर आज उन्हें गर्व होता है कि ये बच्चे जीव-दया, शिक्षा और वृद्धजनों की सेवा कर रहे है.
इन बच्चों से शिक्षा दी जाती है कि इंसानियत और मानवता की कोई सिमा या उम्र नहीं होती ये किसी उम्र की मोहताज नही होती। इनसे सीखा जा सकता है कि सेवा कार्य के लिए ज़रुरत है तो सिर्फ एक जूनून और प्रयास की, इन सभी बच्चों की पहल को नमन रहेगा।