कभी सड़क किनारे बेचा करती थी आचार, आज है करोड़पति, 4 कम्पनियों की है मालकिन
भारत मे नौकरियों की कमी को देखते ज्यादातर लोग आत्मनिर्भर बनना चाहते है, लेकिन मेहनत कोई करना नही चाहता। इसके विपरीत कुछ ऐसे लोग भी है जो अपनी मेहनत के जरिये अपना सपना साकार करलेते हैमऐसी ही एक कहानी से आज हमको रूबरू कराने जा रहे है।
जिसे पढ़कर आपको भी प्रेरणा मिल सकती हैं।
ये कहानी है बुलंद शहर की रहने वाली कृष्णा यादव की। हमारे देश में कई लोग कामकाज की खोज में दूसरे शहरों का रुख करते है। खासकर बड़े शहरों में काम ढूंढने की तलाश में जाते रहते है। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो दूसरे शहर की ओर पलायन कर ख़ुद का व्यवसाय प्रारंभ करते हैं, ऐसे लोगों की हिम्मत और मेहनत को सच में दाद देनी होगी।
ये बात वर्ष 1995-96 की है, जब कृष्णा का परिवार एक बुरे आर्थिक तंगी से जूझ रहा था। उनके पति भी मानसिक तोर पर काफी बुरे हालातो का सामना करना पड़ रहा था, ऐसी हालातो में परिवार की संपूर्ण जिम्मेदारी का भार कृष्णा पे ही गिरा।
जीवन के इस बुरे दौर को चुनौती की तरह स्वीकार कर कृष्णा ने दिल्ली की ओर जाने का रुख किया। अपनी एक सहेली से 500 रूपये उधार लेकर कृष्णा परिवार सहित दिल्ली आ गई, एक नई उम्मीद और परिवार की जीवनशैली बदलने के लिए।
दिल्ली आने के बाद कृष्णा के लिए आसानी से काम ढूंढना इतना आसान नही था। लेकिन, कृष्णा मन लगाकर काम ढूढने में मग्न हो गई, इसके बाद भी कृष्णा को कोई काम नही मिला।
आख़िरकार थक हारकर उन्होंने कमांडेट बीएस त्यागी के खानपुर स्थित रेवलाला ग्राम के फार्म हाउस की देखभाल करने की नौकरी की।
कमांडेट त्यागी के फार्म हाउस में विशेषज्ञों के निर्देशन में बेर और करौंदे के बाग लगाए गए ।
उस समय बाजार में इन फलों को अच्छे दामों पर खरीदा जाता था।
बाग में काम करते करते कृष्णा का खेती के प्रति लगाव बढ़ता चला गया। फिर उन्होंने वर्ष 2001 में कृषि विज्ञान केंद्र, उजवा में खाद्य प्रसंस्करण तकनीक का तीन महीने का प्रशिक्षण लेने का फैसला लिया।
इस प्रशिक्षण के बाद कृष्णा ने भी कुछ प्रयोग करने का साहस दिखाते हुए तीन हजार रुपये लगाकर 100 किलो करौंदे के अचार और पांच किलो मिर्च के अचार निर्मित किया। और पुनः उसे विक्रय कर उन्होंने 5250 रुपये का लाभ अर्जित किया। हालांकि फायदे की अमाउंट उतनी बड़ी नहीं थी, परन्तु प्रथम कामयाबी ने उनके अंदर कुछ बड़ा कर गुजरने की उम्मीद को कायम रखा
हालांकि, उस दौरान कृष्णा को काफी उतार चढ़ाव से भी जूझना पड़ा। लेकिन, उन्होंने कभी हार नही मानी।और इस उतार चढ़ाव के दौर में मन लगाकर काम करती रही।इस दौर में में उनके पति भी उनका हाथ थामे खड़े रहे। कृष्णा को अपने पति का समर्थन मिलता गया और वो ऊंचाइयों की सीढियो पर चढ़ती चली गई।
घर पर ही तैयार करती थी सारा माल
कृष्णा घर पर ही रात- रात भर जाग कर, सारा माल तैयार करतीं और उनके पति नजफगढ़ में सड़कों के किनारे ठेले लगा कर उसे बेचा करते थे।
*मौजूदा समय मे है कई करोड़ो का टर्नओवर*
आज श्रीमती कृष्णा यादव ‘श्री कृष्णा पिकल्स’ ब्रांड के बैनर तले 100 से ज्यादा तरह की चटनी, आचार, मुरब्बा आदि समेत कई प्रकार के उत्पाद निर्यात करती हैं। आपको जानकर हैरानी होगी की आज इनके व्यवसाय में तकरीबन 500 क्वींटल फलों और सब्जियों का उपयोग होता है, जिसकी कीमत कई करोड़ों में है।