व्यक्ति चाहे तो अपने आत्मविश्वास के बल पर बड़ी से बड़ी मुश्किल को पार कर सकता है। आत्मविश्वास से भरी हुई ऐसी ही एक दास्तान हम आपको बताने जा रहे हैं जिसे सुनकर आपके होश उड़ जाएंगे। जी हां दोस्तों हम आपको ऐसे साधु के बारे में बताने जा रहे हैं जो सामान्य होते हुए भी और सामान्य बन चुके हैं। वैसे तो हमारे देश में कई सारे साधु संत है जो कड़ी तपस्या और साधना में लगे हुए रहते हैं।
लेकिन हम जिस साधु के बारे में आपको बताने जा रहे हैं उस साधु ने अपनी तपस्या के लिए एक बहुत ही अनोखा तरीका अपनाया जिसके कारण वे देश ही नहीं बल्कि दुनिया में जग प्रसिद्ध हो गए और हर कोई उन्हें जानने लगा।
साल 1973 से हाथ रखा है हवा में
हम जिस साधु के बारे में बात करने जा रहे हैं उस साधु का नाम है अमर भारती। अमर भारती नाम के इस साधु को लोग कभी-कभी पागल व्यक्ति भी करार कर देते हैं। लेकिन अमर भारती ने जो काम किया वह काम करने के लिए सच में बहुत बड़ा हौसला चाहिए। दरअसल साल 1973 में अमर भारती ने अपने दाएं हाथ को ऊपर उठाए रखा और उसी वक्त का संकल्प ले लिया कि वे आजीवन अपने इस हाथ को इसी प्रकार बनाए रखेंगे।
हालांकि शुरुआत में अमर भारती को ऐसा करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। उन्होंने जब अपना हाथ ऊपर उठा कर रखा तो थोड़ी देर बाद ही उन्हें बहुत दर्द होने लगा लेकिन अमर भारती का इ*रादा बहुत ही मजबूत था इसलिए हुए जरा भी नहीं चूके।
शुरुआत में हुई थी बहुत दिक्कत
ऐसे करते-करते धीरे-धीरे कई महीने बीत गए और धीरे-धीरे कई साल बीत गए। शुरुआत के 2 साल तक अमर भारती को अपने इस हाथ के दर्द से बहुत मुश्किल होने लगी थी लेकिन 2 साल बाद जब धीरे-धीरे उनका हाथ सुन्न पड़ने लगा तो उन्होंने उस दर्द को भुला दिया। उनका हाथ पूरी तरह से कु*पोषित हो चुका है क्योंकि हवा में ऊपर रहने की वजह से उस हाथ की मांसपेशियों में शरीर के पोषक तत्व पहुंच नहीं पाते हैं और उस हाथ में रक्त संचार भी बंद हो चुका है।
जिसके कारण अमर भारती का हाथ अब शरीर का एक नि*र्जीव अंग बनकर रह गया है इसलिए उन्हें उस हाथ से किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं होती। हालांकि उस हाथ को अब नीचे करने में बहुत दर्द महसूस होता है।
बैंक में नौकरी करते थे अमर भारती
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि अमर भारती किसी समय सांसारिक जीवन बिता रहे थे। अमर भारती किसी प्राइवेट बैंक में नौ*करी किया करते थे। अमर भारती की शादी भी हुई थी और उन्हें तीन बच्चे थे। लेकिन धीरे-धीरे अमर भारती का संसार से मो*हभंग हो गया और उन्होंने संन्यास के रास्ते को निकल पढ़ने का निश्चय किया। उन्होंने अपनी नौ*करी घर परिवार और दोस्त सभी को त्याग कर संन्यास की दीक्षा ले ली और हमेशा के लिए सन्यासी बन गए।
अमर भारती ने विश्व कल्याण के लिए यह संकल्प लिया था की वह विश्व शांति के लिए अपना एक हाथ हवा में उठा कर रखेंगे और इसी कड़ी तपस्या को आजीवन करते रहेंगे। सचमुच अमर भारती कि यह तपस्या अ*द्भुत है।