मंदिर से आती है डमरू बजने की आवाज, इस मंदिर के पानी पीने से रोग होंगे दूर।
वैसे तो भारत मंदिरों का गढ़ है, यहां आपको हर क्षेत्र में मंदिर देखने को मिल जाएंगे। लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे है एक ऐसे मंदिर के बारे में ये एशिया का सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है । कहा जाता है कि इस मंदिर में स्वयं महादेव निवास करते हैं।
ये मंदिर हिमाचल प्रदेश के जटोली में स्थित है। ये मंदिर कलयुग में भी अपनी शक्ति और चमत्कार के लिये प्रसिद्ध हैं।माना जाता है कि इस मंदिर में स्वयं भोलेनाथ निवास करते है ।आईये जानते है इस मंदिर के बारे में कुछ दिलचस्प तथ्य-
हिमाचल प्रदेश का सबसे प्रसिद्ध मंदिर
ये एशिया का सबसे ऊंचा मंदिर स्थित है इस मंदिर में आपको भी एक बार जाना चहिये इस मंदिर में जाकर यहां का दृश्य आपको मंत्रमुग्ध कर देगा इतना तो तय है। जी है ये मन्दिर पहाड़ो की वादियों में स्थित है।
ये मंदिर हिमाचल प्रदेश के सोलन से लगभग 7 किलोमीटर दूर है इस मंदिर में महाशिवरात्रि के पर्व पे हजारो के हिसाब से भक्त दर्शन करने आते है। इस मंदिर का निर्माण किसी भवन से कम नही है। यर मन्दिर दक्षिण द्रविड़ शैली से बनाया गया था। इस मंदिर की खूबसूरती आपको चुम्बकीय बल की तरह आकर्षित करती है।
ये है मन्दिर की मान्यता
इस मंदिर के निर्माण कार्य मे लगभग 40 साल का समय लगा ।मान्यता यर भी है कि इस मंदिर में स्वयं भोलेनाथ जी इस मंदिर में बहुत समय तक रहे थे। इसके बाद स्वामी श्री कृष्णानंद परमहंस ने इस मंदिर में आकर तपस्या की थी। उनके दिशा निर्देश पर ही इस मंदिर का निर्माण कार्य चालू हुआ था।
जटोली मन्दिर की संरचना
इस मंदिर का गुबंद 111 फिट ऊंचा है, और मंदिर में प्रवेश हेतू श्रद्धालुओं को 100 सीढियो को चढ़ना होता है । मन्दिर में बाहर की ओर कई देवी देवताओं की मूर्ति स्थापित है ।मन्दिर के अंदर मणि से निर्मित शिवलिंग बना हुआ है। और साथ मे भोलेनाथ जी और पार्वती जी की मूर्ति विराजमान है। इस मंदिर के चोटी पर सोने का कलश भी है।
त्रिशूल से किया था शिव जी ने वार
पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार, एक समय इस क्षेत्र में पानी की अत्याधिक कमी थी। इस समस्या से निजात पाने के लिए, श्री कृष्णानंद परमहंस जी ने भोलेनाथ जी को प्रसन्न करने लिए घोर तपस्या की थी।
इस तपस्या से प्रसन्न शिव जी बहुत संतुष्टि हुई और कहते है भोलेनाथ अगर किसी पर परसन्न हो जाये तो उस भक्त के लिए इस दुनियां में कुछ भी पाना दुर्लभ नही है। श्री कृष्णानंद मोहमाया से रहित थे इसलिए उन्होंने शिव से अपने चरणों मे स्थान मांगा और इस क्षेत्र में लोगो को पानी की समस्या से निजात दिलाने के लिए इस क्षेत्र में पानी के लिए भोले से आग्रह किया। शिव तो शिव है उनके लिए अशम्भव कुछ भी नही है। शिव ने प्रसन्न होकर इस जगह त्रिशूल से प्रहार किया और वहाँ पानी ही पानी कर दिया। आज भी इस जगह कभी पानी की कमी नही हुई।