अपने निजी ख’र्च से किया अपने गांव का विकास, ढाई करो’ड़ रु’पए किए खर्च और जमीन भी कर दी दान

समाज में कई ऐसे लोग हैं जिनके मन में लोगों के प्रति सद्भावना दया प्रेम और करुणा जीवित हैं। आए दिन कहीं ना कहीं से लोगों के द्वारा परोपकार किए जाने की खबरें हम सुनते ही रहते हैं। गरीब और जरूरत’मंद लोगों की मदद करने के लिए सरकारी तो प्रयास करती ही है परंतु कुछ लोग ऐसे होते हैं जो सरकार के ऊपर निर्भर न रहकर स्वयं ही निस्वार्थ रूप से लोगों की सेवा करने में विश्वास रखते हैं और उन्हें ऐसा करने में आनंद की अनुभूति भी होती है।

अपने निजी खर्च से किया अपने गांव का विकास, ढाई करोड़ रुपए किए खर्च और जमीन भी कर दी दान
अपने निजी खर्च से किया अपने गांव का विकास, ढाई करोड़ रुपए किए खर्च और जमीन भी कर दी दान

ऐसे ही एक व्यक्ति के बारे में इस लेख में हम आपको बताने जा रहे हैं जिन्होंने अपने निजी खर्च से अपने पैतृक गांव का नव निर्माण कराया और लोगों का जीवन खुशहाल कर दिया।

उत्तर प्रदेश के एटा जिले के हैदर पुर गांव में पैदा हुए राम गोपाल दिक्षित एक बहुत ही सामान्य परिवार में जन्मे थे। रामगोपाल दीक्षित का बचपन काफी गरीबी से होकर गुजरा। रामगोपाल दीक्षित के गांव में पहले से ही बुनियादी सुविधाओं जैसे बिजली पानी और सड़कों का अभाव रहा परंतु इन सारी सुविधा के अभाव में भी रामगोपाल पढ़ लिखकर बड़े आदमी बने। अपनी शुरुआती शिक्षा रामगोपाल ने अपने ही गांव से की और फिर अपनी पूर्ण शिक्षा समाप्त करके रामगोपाल रोजगार की तलाश में दिल्ली चले गए।

अपने निजी खर्च से किया अपने गांव का विकास, ढाई करोड़ रुपए किए खर्च और जमीन भी कर दी दान
अपने निजी खर्च से किया अपने गांव का विकास, ढाई करोड़ रुपए किए खर्च और जमीन भी कर दी दान

दिल्ली में जाकर रामगोपाल ने अपना बिजनेस खोल लिया। सौभाग्य से रामगोपाल अपने बिजनेस में भी काफी सफल हुए और उन्होंने काफी अच्छी जमा पूंजी इकट्ठा कर ली।

 

इतने बड़े आदमी बनने के बावजूद भी रामगोपाल अपने गांव को भुला नहीं पाए और अपने गांव में वापस चले आए। जब रामगोपाल अपने गांव वापस आए तो वह देख कर के काफी हैरान और दुखी हुए। रामगोपाल ने देखा कि दुनिया तो काफी आगे बढ़ चुकी है परंतु उनका गांव हैदरपुर आज भी उन्हें सुविधाओं के अभाव से गुजर रहा है। रामगोपाल को अपने गांव की स्थिति और लोगों की बदहाली देखकर काफी दुख हुआ।

देश के अन्य क्षेत्रों में तो विकास की नदियां बह रही है परंतु रामगोपाल का गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित ही रहा था। वहीं से रामगोपाल ने अपने गांव के लिए कुछ ना कुछ करने का निर्णय कर लिया।

रामगोपाल ने अपने गांव की टूटी फूटी सड़कें बनवाने की शुरुआत की। अपने गांव की मुख्य सड़कें और अन्य गलियों की सड़कें बनवाने का काम शुरू हुआ और रामगोपाल ने अपने ही खर्च से गांव की पूरी सड़कें बनवा दी। गांव के कई लोगों के घर में शौचालय नहीं थे तो उनके घर में शौचालय भी बनवा कर दिए।

गांव में श्मशान घाट का निर्माण करवाया और गुरु की प्राथमिक स्कूल में भी शौचालय और अन्य सुविधाएं खड़ी की। गांव में कम्युनिटी हॉल भी नहीं था तो रामगोपाल ने अपनी खुद की जमीन दान देकर कम्युनिटी हॉल बनवाया। इस कम्युनिटी हॉल में आज उनके गांव के लोगों की शादियां और अन्य सामाजिक उपक्रम होते हैं।

यह सारा काम करने के लिए रामगोपाल दीक्षित को करीब 2.5 करो’ड़ रुप’ए अपनी जेब से देने पड़े। इतना ही नहीं पैसे कम पड़ जाने पर रामगोपाल ने बैंक से 65 ला’ख रु’पए लोन भी उठाया और वह सारे पैसे गांव के विकास में लगा दिए। रामगोपाल दीक्षित ने अपने गांव की पूरी तस्वीर ही बदल कर रख दी।

रामगोपाल अपने गांव के लिए भगवान बन कर के आए और पूरे गांव का कल्याण कर दिया। यह खबर जब अलीगढ़ के कमिश्नर गौरव दयाल तक पहुंची तो उन्हें भी रामगोपाल के द्वारा किए गए इस लोक कल्याणकारी काम को देखने की उत्सुकता जागृत हुई। कमिश्नर गौरव दयाल हैदरपुर पहुंचे और वह देखकर दंग रह गए पूर्णविराम कमिश्नर ने भी रामगोपाल दीक्षित के द्वारा किए गए इस कार्य की काफी प्रशंसा की।

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