अंग्रेजों के जमाने वाली 100 साल पुरानी लकड़ी की बनी साइकिल, 50 लाख रुपए में मांग चुका है एक व्यक्ति

अक्सर कुछ लोगों को पुरानी चीजें संजोकर रखने की बहुत आदत होती है। पुरानी चीजों को संजो कर रखने के लिए कुछ लोग किसी भी हद को गुजरने के लिए तैयार रहते हैं। पुरानी चीजों के शौकीन लोगों को यदि बहुत चीज बेचने के लिए कितने भी अधिक पैसे दिए जाएं तो भी वह उस चीज को ना बेचते हुए अपनी भावनाओं के साथ कोई समझौता नहीं करते। ऐसे ही एक व्यक्ति सतविंदर सिंह हैं जो अपनी एक सौ साल पुरानी साइकिल को अब तक बहुत ही अच्छे से संजोकर रखे हुए हैं और किसी भी कीमत पर वह अपनी इस साइकिल को भेजना नहीं चाहते हैं।

अंग्रेजों के जमाने वाली 100 साल पुरानी लकड़ी की बनी साइकिल, 50 लाख रुपए में मांग चुका है एक व्यक्ति
अंग्रेजों के जमाने वाली 100 साल पुरानी लकड़ी की बनी साइकिल, 50 लाख रुपए में मांग चुका है एक व्यक्ति

सतविंदर सिंह पंजाब के लुधियाना के रहने वाले हैं। सतविंदर सिंह के पास एक ऐसी साइकिल है जिसे देखने के लिए काफी दूर-दूर से लोग आते हैं और इस साइकिल की काफी प्रशंसा करते हुए जाते हैं।

इस साइकिल की सबसे खास बात यह है कि यह साइकिल लकड़ी और लोहे से बनाई गई है। इससे भी अधिक खास बात यह है कि इस साइकिल को करीब 100 साल पहले बनाया गया था। सतविंदर सिंह बताते हैं कि यह साइकिल उनके पूर्वजों ने एक रेलवे कर्मचारी से खरीदी थी। उस समय भी यह साइकिल काफी मूल्यवान थी और आज के समय में भी यह अमूल्य बनी हुई है।

अंग्रेजों के जमाने वाली 100 साल पुरानी लकड़ी की बनी साइकिल, 50 लाख रुपए में मांग चुका है एक व्यक्ति
अंग्रेजों के जमाने वाली 100 साल पुरानी लकड़ी की बनी साइकिल, 50 लाख रुपए में मांग चुका है एक व्यक्ति

 

आपको जानकर के हैरानी होगी कि अंग्रेजों के समय में इस साइकिल को चलाने के लिए भी लाइसेंस की आवश्यकता होती थी। सतविंदर सिंह के पूर्वजों ने इस साइकिल को चलाने के लिए लाइसेंस भी बनवा रखा था। बीते 100 सालों से पीढ़ी दर पीढ़ी यह साइकिल हस्तांतरित होते-होते आज सतविंदर सिंह के पास आ गई है।

फिलहाल इस साइकिल का लाइसेंस सतविंदर सिंह के ताऊ जी के नाम पर है। परंतु आज इस साइकिल को चलाने के लिए किसी भी प्रकार के लाइसेंस की आवश्यकता नहीं पड़ती बल्कि इसे कहीं पर भी और कैसे भी चलाया जा सकता है।

100 साल पुरानी होने के बावजूद भी इस साइकिल की लकड़ी में जरा सी भी सडन नहीं लगी है और ना ही इस साइकिल में प्रयोग किया गया लोहा जंग से सना है। यह साइकिल इतनी मजबूती से बनाई गई है कि इसे आज भी बड़ी आसानी से चलाया जा सकता है और इसके सभी पुर्जे काफी मजबूती से इस साईकिल से जुड़े हुए हैं।

सतविंदर सिंह बताते हैं कि एक विदेशी सैलानी को जब इस साइकिल के बारे में पता चला तो वे इसे देखने के लिए उनके घर आए। वह विदेशी व्यक्ति इस साइकिल को देख कर इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सतविंदर सिंह से इस साइकिल को 50 लाख रुपए में के बदले में उन्हें बेचने के लिए कहा। परंतु सतविंदर सिंह ने साफ मना कर दिया। सतविंदर सिंह का मानना है कि इस साइकिल के साथ उनके पूर्वजों की यादें और उनकी भावनाएं जुड़ी हुई है इसलिए इस साईकिल का कोई मूल्य नहीं लगाया जा सकता है।

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