अंग्रेजी सिखाने वाला एक लेक्चरर ऑटो चलाने को मजबूर, जानिए इन बुजुर्ग की कहानी
आज के समय मे किसी भी शख्स को उसकी दशा देखकर आंकना बहुत आसान है। लेकिन आज आपको बताने जा रहे एक ऐसे शख्स के बारे में जो एक मुम्बई कॉलेज में इंग्लिश के लेक्चरार रह चुके है। लेकिन आज ऑटो चलाने के लिए मजबूर है। बैंगलोर की रिसर्चर निकिता ने हाल ही में एक ऑटो ड्राइवर के बारे में अनुभव साझा किया है।
इन्होंने बताया कि वह हाईवे के बीच सवारी का इंतजार कर रही थी। कैब बुक न होने की वजह से वह निराशा महसूस कर रही थी। तभी इस रोड पे ऑटो चलाने वाले शख्स ने इनको ऑटो का इंतजार करते हुए देखा। और ऑटो में इनको बैठाया।
तभी निकिता ने ऑटो चालक को इंग्लिश बोलते हुए देखा। निकिता ने ये जानकारी अपने लिंकेडीन के जरिये साझा की और आगे बताया कि इन ऑटो चालक को फर्राटेदार इंग्लिश बोलते हुए देखकर हैरान थी। ऑटो चालक की पहचान 74 वर्षीय पटाबी रमन के रूप में हुई। निकिता ने बताया कि वो इन बुज़र्ग अंकल की इंग्लिश से इसलिए भी हैरान थी क्योंकि पटाबी रमन बिना किसी हिचकिचाहट फर्राटेदार इंग्लिश में बात कर रहे थे।
जब निकिता ने बताया कि उन्हें शहर की दूसरे छोर जाने के लिए देर हो रही है, तो ऑटोरिक्शा चालक ने अच्छी अंग्रेजी में जवाब दिया, ‘कृपया अंदर आएं मैम, आप जो चाहें भुगतान कर सकती हैं.’ निकिता शुरू में हैरान रह गई। इसके बाद दोनों में करीब पोने गण्टे वार्तालाप चली।
पटाबी रमन मुम्बई के एक कॉलेज में रह चुके थे कभी इंग्लिश के लेक्चरार
ऑटो चालक और निकिता के बीच चली 45 मिनट की बातचीत में पटाबी रमन ने अपनी जिंदगी से जुड़े कई अहम खुलासे किए। पटाबी रमन ने बताया उन्होंने अंग्रेजी विषय से एमए एवं एमएड किया हुआ है। इसके बाद बुजुर्ग ऑटोचालक ने निकिता के मन मे चल रहे प्रश्न का अंदाज लगाते हुए कहा तो आप मुझसे पूछने जा रहे हैं कि मैं ऑटो क्यों चला रहा हूं?’
अपनी जिंदगी के बारे में खुलासे करते हुए इन बुजुर्ग ने बताया कि वो 14 साल से ऑटो चला रहे है।
वो मुम्बई के एक कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाया करते थे। वो 60 वर्ष की उम्र में रिटायर हुए और इसके बाद एक निजी कॉलेज में काम करना शुरू किया।
इस कॉलेज में उनको घर का खर्चा चलाने के लिए पर्याप्त तनख्वाह नही मिलती थी। जिसकी वजह से उन्होंने वापस कर्नाटक जाने का फैसला किया। और ऑटो चलाने का फैसला किया। वो आजकल अपनी 72 वर्षीय पत्नी के साथ कडुकोडी में रहते है। उन्होंने बताया कि ऑटो चलाने से उनको डैली के 700-800 रुपये मिल जाते है जो उनके और उनकी पत्नी के लिए पर्याप्त है।
जीवन का आखिरी दौर ऐसे कर रहे है व्यतीत
रमन पटाबी ने इस 45 मिनट की बातचीत में ये भी बताया कि, ‘मैं अपनी पत्नी को गर्लफ्रेंड कहता हूं क्योंकि आपको हमेशा उनके साथ समान व्यवहार करना चाहिए. जैसे ही आप पत्नी कहते हैं, पति सोचते हैं कि वह एक दासी है जिसे आपकी सेवा करनी चाहिए लेकिन वह किसी भी तरह से मुझसे कम नहीं है, वह कभी-कभी मुझसे ज्यादा श्रेष्ठ होती है. वह 72 साल की हैं और घर की देखभाल करती हैं जबकि मैं दिन में 9-10 घंटे काम करता हूं. हम कडुगोडी में 1 बीएचके फ्लैट में रहते हैं जहां मेरा बेटा 12,000/- का किराया देने में मदद करता है, लेकिन हम अपने बच्चों पर निर्भर नहीं हैं. वे अपना जीवन जीते हैं और हम खुशी से अपना जीवन जीते हैं. अब मैं अपनी सड़क का राजा हूं, मैं जब चाहूं अपना ऑटो निकाल सकता हूं और जब चाहूं काम कर सकता हूं.’